अल्पसंख्यक मतों को लेकर टीएमसी चिंता में, पहले हिंसा फिर धरना फ्लॉप होने से ममता की बढ़ी मुश्किलें

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कोलकाता (Kolkata) । पश्चिम बंगाल (West Bengal) के हालात सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस (Trinamool Congress) की चिंता बढ़ाते नजर आ रहे हैं। पहले सागरदिघी की हार और फिर रामनवमी पर हिंसा (violence) ने अल्पसंख्यक मतों के लिहाज से पार्टी को सोचने पर मजबूर कर दिया है। कहा जा रहा है कि हिंसा के चलते मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Chief Minister Mamta Banerjee) का केंद्र के खिलाफ धरना प्रदर्शन भी फ्लॉप हो गया है।

अल्पसंख्यक वोट पर क्यों चिंता में है टीएमसी?
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, टीएमसी के एक नेता ने स्वीकार किया है कि पार्टी अल्पसंख्यक मतों के दूर जाने के बारे में सोचकर परेशान है। उन्होंने बताया कि अगर यह धारणा बन गई कि प्रदेश सरकार उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने में असफल रही, तो वोट बैंक प्रभावित हो सकता है।

2021 विधानसभा चुनाव को लेकर उन्होंने कहा, ‘अल्पसंख्यक भाजपा से डरे हुए हैं और हमें सभी अल्पसंख्यक सीटों पर बढ़त मिली, जहां आमतौर पर सीपीआई(एम) या कांग्रेस मजबूत थे।’

अब खास बात है कि टीएमसी के कई नेता पहले ही भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे हैं। ऐसे में अल्पसंख्यक वोट बैंक का घटना टीएमसी को काफी नुकसान पहुंचा सकता है। सागरदिघी की हार के साथ ही सीएम बनर्जी ने पार्टी में मुस्लिम नेतृत्व में फेरबदल किए थे और अल्पसंख्यकों के लिए अलग विकास बोर्ड बनाने का फैसला किया था।

रिपोर्ट के मुताबिक, टीएमसी के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘अल्पसंख्यक भाजपा से डरे हुए हैं, लेकिन वे दंगों से भी डरते हैं। अब अल्पसंख्यकों के बीच शिक्षित वर्ग कह रहा है कि सीपीआई(एम) के शासन में ऐसे दंगे कभी नहीं हुए।’ हाल ही में हुए हिंसा के बाद बंगाल सरकार में मंत्री अरूप रॉय जब हिंसाग्रस्त इलाकों में पहुंचने की कोशिश कर रहे थे, तो उनकी कार को निशाना बनाया गया।

सियासी समस्याएं ऐसे भी बढ़ीं
हिंसा को लेकर भाजपा और टीएमसी एक-दूसरे पर आरोप लगा रही हैं। इधर, भाजपा और सीपीआई(एम) दोनों ही टीएमसी को घेर रही हैं। एक ओर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने कहा, ‘सीएम सभी के लिए नहीं, बल्कि एक धर्म के लिए काम कर रही हैं।’ वाम दल के नेता सुजान चक्रवर्ती ने हिंसा में टीएमसी और भाजपा के शामिल होने का संदेह जताया।

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