बरैया के लिए उनके बयान और संध्या की निश्क्रियता राह में खड़ी कर रही परेशानी
भोपाल। चंबल अंचल की भिंड संसदीय सीट पर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही प्रत्याशियों की मुसीबत बढ़ने लगी है। नामांकन की प्रक्रिया ष्शुरू होने के पहले ही दोनों प्रत्याशियों ने मैदानी सक्रियता तो बढ़ा दी, मगर दोनों के सामने परेशानी भी बढ़ती जा रही है। कांग्रेस प्रत्याशी फूल सिंह बरैया अपने बयानों को लेकर घिरते नजर आ रहे हैं। वहीं भाजपा प्रत्याशी संध्या राय को क्षेत्र में उनकी पांच साल तक रही निश्क्रियता मुसीबत खड़ी कर रही है।
भिंड संसदीय सीट पर कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों ने प्रत्याशी चयन कर मैदानी सक्रियता बढ़ा दी है। कभी बसपा नेता के रूप में पहचाने जाने वाले कांग्रेस विधायक फूलसिंह बरैया को इस बार कांग्रेस ने भिंड से मैदान में उतारा है। उनके नाम की घोशणा के साथ ही पिछला चुनाव लड़ चुके देवाशिश जरारिया की नाराजगी सामने आई थी। वे यहां से दावेदारी कर रहे थे। पिछला लोकसभा चुनाव हारने के बाद से उनकी सक्रियता यहां नजर आई थी। मगर कांग्रेस ने भांडेर से विधायक रहे फूल सिंह बरैया पर भरोसा जताया। बरैया की वैसे इस अंचल के दलित मतदाताओं में खासी पैठ है। इसके चलते उन्हें कांग्रेस ने मैदान में उतारा है। वैसे भी यह सीट इस वर्ग के लिए आरक्षित सीट हैं।
वहीं भाजपा एक बार फिर मोदी लहर के चलते जीत के विश्वास के साथ मैदान में हैं। भाजपा ने इस अंचल के दूसरे सभी दावेदारों को दरकिनार कर सांसद संध्या राय पर ही भरोसा जताया और उन्हें फिर से उम्मीदवार घोषित कर टिकट दिया। इसके बाद दावेदार तो खुलकर विरोध करते नजर नहीं आए, मगर क्षेत्र में उनका खासा विरोध होने लगा है। वे जहां पहुंच रही है, लोग उनके पिछले पांच साल की निष्क्रियता को लेकर सवाल उठा रहे हैं। इस बात तो मतदाता खुलकर उनसे सवाल कर रहे हैं कि उन्हें पांच साल में किया क्या है। प्रत्याशी घोषित होने के बाद उनका लोगों से बात करते हुए एक वीडियो वायरल हो चुका है। इसमें लोग उन पर निष्क्रियता और क्षेत्र के लिए कुछ न करने का आरोप लगा रहे हैं। प्रत्याशी की यह स्थिति चुनाव में भाजपा को नुकसान पहुंचा सकती है। फिलहाल दोनों ही दलों के प्रत्याशियों के सामने अपनी-अपनी कमजोरियां की इस सीट पर मुसीबत खड़ी कर रही है। बरैया के लिए उनके द्वारा सवर्ण वर्ग को केन्द्रीय बयान परेशानी में डालते नजर आ रहे हैं, तो संध्या के लिए उनकी क्षेत्र में निश्क्रियता परेशानी का कारण बनती जा रही है।
बसपा बिगाड़ती है खेल
2008 में हुए परिसीमन के बाद भिंड संसदीय सीट पर भाजपा का कब्जा रहा है। उसके पहले इस सीट पर कांग्रेस और बसपा प्रत्याशी सांसद निर्वाचित होते रहे हैं। 1971 के चुनाव में इस सीट पर विजयाराजे सिंधिया ने चुनाव जीता था। 2008 के पहले यह सीट सामान्य वर्ग के लिए थी। मगर परिसीमन के बाद यह एससी वर्ग के लिए आरक्षित हो गई। इस सीट पर बसपा का प्रत्याशी अब तक चुनाव तो नहीं जीता है, मगर भाजपा और कांग्रेस के परिणामों को प्रभावित जरूर करता है। पिछले दो चुनावों में इस सीट पर बसपा को 6.93 और 4.63 फीसदी वोट हासिल हुए थे। जिसके चलते कांग्रेस के लिए यहां मुसीबत खड़ी हो गई थी।