कांग्रेस का केंद्र पर हमला, कहा, क्या पॉलिटिकल पार्टियों पर लगता है इनकम टैक्स, अगर नहीं तो कांग्रेस से क्यों हो रही डिमांड

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नई दिल्ली. हम पोस्टर भी नहीं छपवा पा रहे, हमारे अकाउंट फ्रीज कर दिए गए हैं, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने गुरुवार 21 मार्च को जब एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ये बात कही, तब उनके अंदर का गुस्सा साफ झलक रहा था. लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद कांग्रेस की ओर से मौजूदा सरकार पर ये पहली बार बड़ा हमला किया गया है.

कांग्रेस का आरोप है कि आयकर विभाग ने उसके और सहयोगी संगठनों के करीब 11 खातों को सील कर दिया है. इससे जुड़ा एक विवाद आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण में चल रहा है, और इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने उनके अकाउंट में बचे 65 करोड़ रुपए से ज्यादा निकाल लिए हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वाकई भारत में राजनीतिक दलों को इनकम टैक्स देना पड़ता है? अगर नहीं, तो उन्हें किस दायरे में इनकम टैक्स से छूट मिलती है?आम टैक्स में छूट होने के बावजूद कांग्रेस से इनकम टैक्स की डिमांड क्यों की गई है? इस मामले में आखिर आयकर कानून के क्या प्रावधान हैं? चलिए बताते हैं,०

इनकम टैक्स की धारा-13 ए क्या है

आम आदमी से लेकर कॉरपोरेट कंपनी तक जब इनकम टैक्स भरती है, तो उसे कई अलग-अलग धाराओं के तहत इनकम टैक्स से छूट मिलती है. जैसे 80-ष्ट, 80-ष्ठ इत्यादि. ठीक उसी तरह इनकम टैक्स कानून की धारा-13ए देश में राजनीतिक दलों की टैक्स लायबिलिटी के बारे में बताती है. ये धारा देश में जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा-29ए के तहत रजिस्टर्ड सभी पॉलिटिकल पार्टियों को आयकर से 100 प्रतिशत छूट प्रदान करती है.

राजनीतिक दलों को ये छूट सभी तरह की इनकम पर मिलती है, जैसे कि ब्याज, डिविडेंड, घर या प्रॉपर्टी का किराया, लोगों से इक_ा होने वाला चंदा इत्यादि. पार्टियों को 20,000 रुपए से अधिक दान देने वाले हर व्यक्ति या कंपनी की डिटेल अपने पास रखनी होती है. वहीं 2,000 रुपए प्रति व्यक्ति से अधिक कैश डोनेशन भी पार्टियां स्वीकार नहीं कर सकतीं. इसमें बस इलेक्टोरल बॉन्ड से मिले चंदे की जानकारी को पास में रखना अनिवार्य नहीं है, लेकिन इसके साथ एक शर्त है. वो ये कि राजनीतिक दलों को अपने अकाउंट की ऑडिट रिपोर्ट इलेक्शन कमीशन को जमा करनी होती है, वहीं आयकर विभाग में रिटर्न ऑफ इनकम दाखिल करना होता है. इसके लिए जो प्रावधान है, वहीं पर कांग्रेस का पेंच फंसा है. कांग्रेस को उस साल उसके विधायकों और सांसदों ने एक महीने की सैलरी दान में दी थी, जो रकम करीब 14.49 लाख रुपए का नकद दान बनती है.

कांग्रेस का मामला और इनकम टैक्स का पेंच

आयकर कानून की धारा-13ए जहां राजनीतिक दलों को इनकम टैक्स से छूट देती है, वहीं ये भी सुनिश्चित करती है कि पॉलिटिकल पार्टी समय से टैक्स रिटर्न फाइल करें. हर राजनीतिक दल अपने अकाउंट्स की देखभाल के लिए एक कोषाध्यक्ष नियुक्त करता है. उसकी ये जिम्मेदारी होती है कि वह पार्टी का रिटर्न तय तारीख तक जमा कर दे.

आयकर कानून की धारा-139(4बी) के तहत उसे रिटर्न दाखिल करना होता है, वहीं जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा-29सी के तहत अकाउंट्स की रिपोर्ट चुनाव आयोग के पास जमा करनी होती है. नहीं तो उस वित्त वर्ष के लिए मिलने वाली टैक्स छूट पॉलिटिकल पार्टी को नहीं मिलती है, और जो टैक्स रेट देश के सामान्य नागरिक पर लगता है, वही राजनीतिक दल को भी देना होता है.

यहीं पर कांग्रेस का मामला उलझा है. आयकर विभाग ने कांग्रेस को नोटिस वित्त वर्ष 2017-18 के लिए भेजा है, जब पार्टी की ओर से आयकर रिटर्न दाखिल करने में देरी हुई. आयकर विभाग ने 210 करोड़ रुपए की डिमांड जेनरेट की है. इसी टैक्स डिमांड को आईटीएटी में कांग्रेस ने चुनौती दी है, जिस पर आईटीएटी ने शुरुआती सुनवाई करते हुए कांग्रेस को अकाउंट में मामले में फैसला आने तक 115 करोड़ रुपए मेंटेन करने का ऑर्डर दिया.
हालांकि अब कांग्रेस का आरोप है कि रिकवरी के नाम पर आयकर विभाग ने उसके अकाउंट में पड़े 65 करोड़ रुपए निकाल लिए हैं. चुनाव से ठीक पहले उसके खातों को फ्रीज करना लोकतंत्र पर हमला है. कांग्रेस के कोषाध्यक्ष अजय माकन का कहना है कि उन्हें 1993-94 के लिए आयकर विभाग ने अलग नोटिस भेजा है. तब सीताराम केसरी कोषाध्यक्ष थे. अब देखना ये है कि इस मामले में आईटीएटी क्या फैसला लेता है.

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