भाजपा को तोमर की रणनीति और जातीय समीकरण पर भरोसा
भोपाल। भाजपा के लिए गढ़ बनते जा रहे मुरैना लोकसभा क्षेत्र में इस बार चुनाव कड़ा हो गया है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों के उम्मीदवार अंदरूनी कलह में उलझे हैं। कांग्रेस को तो इसके चलते बड़ा झटका भी लग चुका है। वहीं भाजपा पूर्व केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर की रणनीति के चलते जातीय समीकरण बैठाते हुए माहौल को अपने पक्ष में करने में जुटी है, लेकिन बसपा प्रत्याशी के आने से उसकी राह में भी बड़ी बाधा खड़ी हुई है।
मुरैना संसदीय सीट 2009 में सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित हुई। इसके बाद से इस सीट पर पूर्व केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर का प्रभाव बढ़ता रहा है। वे खुद इस सीट पर दो बार 2009 और 2019 में सांसद चुने गए हैं। 2014 में अनूप मिश्रा इस सीट से सांसद निर्वाचित हुए थे। इस बार भाजपा ने यहां पर नरेन्द्र सिंह तोमर समर्थक शिवमंगल सिंह तोमर पर भरोसा जताया है। शिवमंगल को लेकर पार्टी के अधिकांश नेता खफा नजर आए, इसके चलते अंदरूनी तौर पर अब तक उन्हें पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं का वैसा साथ नहीं मिला जिस तरह मिलना चाहिए था। इसके चलते पार्टी ने गुर्जर वोटों को साधने की कवायद करते हुए कांग्रेस विधायक रामनिवास रावत भाजपा की सदस्यता दिलाकर जातिगत समीकरण बैठाने का प्रयास किया। भाजपा अब अपने को इस सीट पर सुरक्षित मान रही है। हालांकि कांग्रेस प्रत्याशी सत्यपाल सिकरवार के मैदान में होने से पूरी तरह भाजपा अपने को निश्चित नहीं मान रही है। हालांकि जैसे ही भाजपा को लगा कि इस निर्वाचन क्षेत्र में स्थिति मुश्किल है, तो वे रावत को पार्टी में ले आए। रावत के दलबदल के बावजूद, पार्टी के लिए यह आसान नहीं होने वाला है।
कांग्रेस की भी कम नहीं हुई मुसीबत
वहीं दूसरी और कांग्रेस प्रत्याशी सिकरवार भी अंदरूनी कलह में उलझे हैं। वे भाजपा से कांग्रेस में आए और टिकट भी पा गए। इसके चलते कांग्रेस नेताओं की नाराजगी दिखाई दी है। इसी नाराजगी के चलते कांग्रेस विधायक रामनिवास रावत भी एनवक्त पर कांग्रेस का साथ छोड़कर भाजपा चले गए। इसके बाद कांग्रेस ने यहां प्रियंका गांधी की सभा और रोड शो कराकर समीकरण साधने की कोशिश जरूर की है, मगर जातिगत समीकरणों में अब भी वह उलझी नजर आ रही है। कांग्रेस इस विधानसभा क्षेत्र में माहौल बनाने की कोशिश कर रही है। शिवमंगल के खिलाफ जनता में आक्रोश है, ऐसे में नरेंद्र सिंह तोमर खुद आगे आए हैं और वे मतदाता से भाजपा के पक्ष में वोट की अपील कर रहे हैं।
बसपा पहुंचा रही दोनों दलों को नुकसान
मुरैना सीट पर दोनों पार्टियों के उम्मीदवारों से ज्यादा अहम है जाति समीकरण हैं, यानी दोनों अलग-अलग जातियों के वोटरों को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं। अनुसूचित जाति के मतदाताओं की संख्या अन्य जातियों की तुलना में अधिक है। इस क्षेत्र में 3.50 एससी मतदाता हैं। इनमें क्षत्रिय, ब्राह्मण, रावत, गुर्जर, किरार, धाकड़, लोधी, मुस्लिम और ओबीसी मतदाता भी हैं। तोमर और सिकरवार के अलावा बसपा के रमेश गर्ग बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। बसपा की वजह से एससी वोटरों का भी समर्थन मिल सकता है। फिर भी गर्ग को मिलने वाले वोट भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं।