निर्दलीय और दूसरे दलों के दल बदलने वाले विधायक भी हारे चुनाव
भोपाल। 2018 के विधानसभा चुनाव में दूसरे दलों और निर्दलीयों ने दल बदलकर सत्ता का साथ दिया, इसके चलते इस बार मतदाता ने उन्हें चुनाव जीतने में रूचि नहीं दिखाई। दल बदल करने वाले इन विधायकों में अधिकांश को इस बार हार का सामना करना पड़ा।
विधानसभा के 2018 के चुनाव में चार निर्दलीय दो बसपा और एक सपा के प्रत्याशी चुनकर विधानसभा पहुंचे थे। प्रदेश में जब कमलनाथ सरकार बनी तो इन सभी ने कमलनाथ सरकार का साथ दिया और कुछ ने पद भी पाया। जिन्हें पद नहीं मिला उन्होंने 18 माह की कमलनाथ सरकार में अपने हिसाब से काम कराए। इसके बाद प्रदेश की राजनीति में सिंधिया समर्थकों द्वारा पाला बदला गया और कमलनाथ सरकार गिर गई। बाद में जब प्रदेश में फिर शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में सरकार बनी तो इन विधायकों ने फिर से पाला बदला। पाला बदलने वाले विधायकों में प्रदीप जायसवाल गुड्डा, सपा विधायक राजेश शुक्ला, बसपा विधायक संजीव कुशवाह, राणा विक्रम सिंह, सचिन बिरला थे। इन्होंने दल बदलने में रूचि दिखाई और भाजपा के साथ हो गए। भाजपा ने इन विधायकों में से प्रदीप जायसवाल, राणा विक्रम सिंह, सचिन बिरला को टिकट दिया। मगर प्रदीप जायसवाल चुनाव हार गए। इसी प्रकार राजेश शुक्ला को भाजपा ने बिजावर से टिकट दिया, मगर इस बार उन्हें मतदाता ने जीताने में रूचि नहीं दिखाई। वहीं संजीव कुशवाह को टिकट नहीं दिया। वे बसपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतरे, मगर उन्हें हार का सामना करना पड़ा। पाला बदलने वाले दो विधायक सचिन बिरला और राणा विक्रम सिंह ही भाजपा के टिकट पर चुनाव जीत सके। दूसरी ओर निर्दलीय केदार डाबर, सुरेन्द्र सिंह शेरा ने कांग्रेस का साथ दिया, जिन्हें पार्टी ने प्रत्याशी भी बनाया। इनमें से केदार डाबर तो चुनाव जीत गए, मगर शेरा चुनाव हार गए।
पंद्रह सीटों पर नोटा ने बिगाड़ा खेल
नोटा को लेकर आए दिलचस्प आंकड़ों में देखा जा सकता है की इसने 15 सीटों पर खेल बिगाड़ा है। इन विधानसभाओं में हार-जीत के बीच अंतर से ज्यादा वोट नोटा ने हासिल किए हैं, इसमें से 5 सीटों पर कांग्रेस को चोट मिली है. वहीं भाजपा को 10 सीटों पर नोटा की चोट का सामना करना पड़ा है। नोटा के कारण माधंता, धरमपुरी, शाजापुर, गुन्नौर और सोहागपुर में कांग्रेस को हार मिली है। वहीं भाजपा को भीकनगांव, राजपुर,मनावर, महिदपुर, सेंधवा, हरदा, थांदला, गोहद, सेमरिया और टिमरनी में हार मिली है। नोटा को लेकर देखा जाए तो प्रदेश में 2018 में 1.42 और 2023 में 0.98 प्रतिशत मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना।