जलवायु परिवर्तन एवं उसके दुष्परिणाम

0

विगत कुछ वर्षों से  जलवायु परिवर्तन  मानव जाति के लिये सबसे बड़ी समस्या के रूप  सामने आ रही है ।हाल में ही भारत में ‘सेन्टर फार साइंस एन्ड एनवायरनमेंट  ” की ताजा रिपोर्ट में दर्शाया गया है कि साल 2022 के जनवरी से सितम्बर  के नौ महिनों में देश में 88%मौसम की चरम घटनाएं  घटी ।यानि 273 दिनों में देश के किसी न किसी हिस्से  ने  हीट वेव ,कोल्ड वेव ,साइक्लोन  बिजली गिरना , भारी वर्षा,या भूस्खलन  का सामना किया ।जिनमें 2755 लोगों की जान गई ,18लाख हेक्टेयर  फसल बर्बाद  हुई ,4,16,667घर नष्ट हुए  ।
आइये पहले ‘जलवायु ‘ शब्द  को समझ ले ।फिर समझेंगे जलवायु परिवर्तन  को ।किसी विस्तृत  क्षेत्र के पिछले 30-35वर्षों के औसत मौसम की स्थायी दशाएं जलवायु कहलाती है। जलवायु परिवर्तन  एक सतत् चलने वाली प्रक्रिया  है ।प्राकृतिक  वातावरण  तथा महासागर  में  परिवर्तन  होते रहते हैं।ज्वालामुखी पर्वतों का फटना ,भूगर्भीय  घटनाएं ,पृथ्वी की अक्ष का बदलाव से जलवायु परिवर्तन  होता रहता है,परन्तु बहुत धीमा होता है , परन्तु इन प्राकृतिक कारणों की तुलना में मानव जनित कारकों से जलवायु परिदशाएं अब स्थायी न होकर प्रत्येक  वर्ष
में तेजी से जलवायु परिवर्तन  कर रही  है।पूरे विश्व  में तापमान  तेजी से बढ रहा है ।यह अनुमान लगाया गया है कि 2030 तक धरती का  तापमान 2.5 डिग्री सेल्सियस बढ जावेगा यदि पर्याप्त  उपाय नहीं किये गये तो । संयुक्त राष्ट्र संघ  की एजेन्सी ने  यूनिसेफ  ने अपनी रिपोर्ट  में दावा किया है कि 2050 तक  दुनियाँ का हर बच्चा लू की चपेट  में आ जावेगा ।बढ़ते तापमान  से प्रत्येक  देश में जंगलों में आग लगने की घटनाएं तेजी से बढ़ रही है ।केलिफोर्निया  के जँगल अभी भी दहक रहे है  ।भारत में उत्तराखंड  में 4847 हेक्टेयर  जँगल आग से साफ हो चुके हैं।
जंगलों की आग से बेशकीमती वन तो नष्ट  होते ही हैं ,वन्य जैव विविधता और प्राकृतिक  जल स्त्रोत  भी नष्ट  हो जाते हैं । हिमालयीन बेसिन में धधकती वनों के धुएं से लोगों में सांस और एलर्जी संबंधी बीमारियाँ तेजी से फैल रही हैं ।हिमालयीन बेसिन में इस वर्ष  वर्षा बहुत कम हुई है। जिसका कारण भी जलवायु परिवर्तन  ही है ।
जलवायु परिवर्तन  से जलीय पौधों  एवं जलीय जीवों को भारी नुकसान  हुआ  है ।22देशों के 57वैज्ञानिकों ने गम्भीरतापूर्वक  चेतावनी दी है कि समुद्रों में मूँगे की चट्टाने और मछलीयाँ तापमान  बढने एवं आक्सीजन  की कमी से तेजी से समाप्त हो रही है ।समुद्रतटीय  प्रदेशों एवं नदियों के तटीय प्रदेशों में रहने वाले जीवों  का भी अस्तित्व  खतरे मे है ।
जलवायु परिवर्तन  से वर्षा का चक्र भी बिगड़ा है ।सामान्य वर्षा वाले देष भी अतिवृष्टि के कारण बाढ़ की विभीषिका से जुझ रहे हैं ।इसी वर्ष  आस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड   में तथा जर्मनी में बाढ़ ने लोगों का जीवन बेपटरी  कर दिया।लाखों लोग विस्थापित  हुऐ ।
बीते कुछ वर्षों से एशियाई  देशों में मानसूनी वर्षा के महिने लगातार  बदल रहे हैं ।मानसून की बिदाई के महिनों में  भी अबके देश के कई  भागों में वर्षा होती रही ।मानसून बाढ़ और बादल फटने जैसी विभिषिकाएं प्रतिवर्ष  बढ़ाता जा रहा है ।बद्रीनाथ  और केदारनाथ  में बादल फटने से हुई जनधन की हानि से सभी अवगत है ।बादल फटने का मुख्य कारण है घाटी और पहाड़ों के बीच बढ़ता हुआ तापमान का अंतर ।घाटी में बेतहाशा पेड़ों की कटाई  से घाटी का तापमान  बढ़ता जा रहा है ।
जलवायु परिवर्तन  का सबसे अधिक  प्रभाव  खाद्य  पदार्थों के उत्पादन  पर पड़ा।तापमान  बढ़ने और असामान्य वर्षा सेवारत मेंखरीफ की फसल में4.3%तथा रबी कीउपज में4.1%का नुकसान  हुआ ।भारत की जीडीपी में 2.8%का सालाना नुकसान  हुआ ।
अमेरिका जैसे देश  भी जलवायु परिवर्तन   के खतरों से जुझ रहे हैं ।ब्रिटेन में महँगाई  चरम पर है ।पर्याप्त और पौष्टिक  आहार  करना मुश्किल  होता जा रहा है ।
अब इतना तो  हम सभी  समझ गये हैं कि जलवायु परिवर्तन  का मुख्य कारक बढ़ता तापमान  है ,जो  वायुमंडल  में ग्रीनहाउस  गैसों के बढ़ने  के कारण उत्तरोत्तर  वृद्धि को प्राप्त  हो रहा है ।कार्बन डाई आक्साइड  ,क्लोरीन फ्लोरोकार्बन्स,मीथेन  ,नाइट्रोजन आक्साइड  ,जैसी गैसे वायुमंडल को लगातार  प्रदूषित  कर रही है ।उद्योग  ,परिवहन के आधुनिक  साधन जो कोयले पेट्रोल  ,डीजल   का उपयोग करते हैं ,हानिकारक  गैसों का उत्सर्जन  कर तापमान  बढाते हैं।चरागाहों  और कृषि का बढ़ता रकबा भी अप्रत्यक्ष  रूप से जलवायु परिवर्तन  का उत्तरदायी है ।
पर्यावरण में आक्सीजन  कम होती जा रही है ,वायुमंडल  में ओजोन  का  छेद बढ़ता जा रहा है ।
रूस और यूक्रेन  के बीच  लम्बा खींचता युद्ध  पूरे विश्व  में जलवायु परिवर्तन  को घातक बना रहा है । इस युद्ध  के कारण पूरे विश्व  में गेहूँ की कीमते तेजी से बढ़ गई हैं ।डालर पर निर्भर  देशों की हालत पतली होती जा रही है ।आज जरूरी हो गया है कि प्रत्येक  देश हानिकारक  गैसों का उत्सर्जन  पर लगाम कसे,कोयले तथा पेट्रोल  जैसे तापमान  को बढ़ाने वाले परम्परागत  साधनों के स्थान पर अक्षय ऊर्जा के साधनों – वायु,जल एवं सौर ऊर्जा का अधिकाधिक  उपयोग  करे ।नदियों ,समुद्रों तथा पर्वतों के मूल स्वरूप  से अधिक  छेड़छाड़ न करें
टूटता बिखरता हिमालय
‐—……………………….
धर्म ,आस्था ,और विकास  के अजीब गोरखधंधे में फँसकर हिमालय टूट रहा है ,बिखर रहा है।  ‘पठान ‘फिल्म  में भगवा रंग को लेकर एकजुट होने वालीवाली जनता को परवाह  ही नहीं कि देश का रक्षक खुद अपने अस्तित्व  को लेकर गमगीन है ।
जोशी मठ में भूधँसाव की स्थिति का आंकलन,वर्ष  1976 मेंगठित मिश्रा कमेटी से प्रारम्भ  किया गया ,अबतक आई कई रिपोर्ट में भूधंसाव को अत्यन्त गम्भीर बताया गया ।रेलवे निगम ने भी यहाँ की भूसंरचना को रेलमार्ग  के लिये अनुकूल  नहीं बताया गया ।पर
धर्म  के नाम  पर सियासत  ने वैज्ञानिकों की चेतावनी को नजरअंदाज  कर विकास  के नाम पर अंधाधुंध  जँगलों  और पहाड़ों को काटकर  निर्माण  कार्य  जारी रखे ।और परिणाम  सामने है ।
टिहरी जिलाने में  बांध प्रभावित 16गाँवों में से कई गाँवों में गहरी दरारे पड़ रही हैं ।चमोली जिले के कर्णप्रयाग में 60घरों में दरारे पड़ने के ताजा समाचार  चिंता में डाल रहे हैं ।अब मंडी में भी इसी तरह की घटनाएं सामने आ रही हैं ।
यह सच है कि सड़के बनने से आम जनता को सहूलियत  होती है ,बाँध बनने से पर्वतीय प्रदेश रोशनी से जगमग होते हैं , पर्यटन बढ़ने से लोगों को रोजगार  मिलता है  आर्थिक
समृद्धि बढ़ती है ,पर यह सब मिलता है प्रकृति का नाश करके ।प्रकृति के हर अवयव में संतुलन  रहता है ।आकाश  ,पृथ्वी  और समुद्रों में गजब का संतुलन होता है ।जितना ताप प्रथ्वी पर आता है उतना ही ताप धरा  आकाश  में परावर्तित  कर देती है ,जिसे बादल आदि अवशोषित  कर लेते हैं ।जितना पानी धरा पर आता है ,उतना ही पानी जल के विभिन्न  स्त्रोतों द्वारा वाष्पित  होकर पुनः चला जाता है ।
प्रकृति की संवेदनशीलता देखे ।मरूस्थल में मरूद्यान  ,मीठे पानी के सोते मिलेगे तो दूसरी ओर ठंडे प्रदेशों में गीजर या गर्म पानी के सोते  देखे जा सकते हैं ।पर मनुष्यत इस संतुलन को बिगाड़ने पर तुला है ।फलस्वरूप  जलवायु परिवर्तन  से हर देश त्रस्त  हो रहा है ।धीरे धीरे विषम जलवायु  पूरे विश्व  को जकड़  रही है ।याने गर्मी में अत्यधिक  गर्मी ,सर्दियों में अत्यधिक  सर्दी ,और वर्षाकाल में नदियों में भीषण बाढ़ आने की स्थिति लाने वाली भारी वर्षा के कहर को प्रत्येक  देश
भोग चुका है ।अंधाधुंध  पर्वतीय  पेड़ों की कटाई से पर्वत कमजोर हो रहे हैं दरक रहे हैं ।
मानव जीवन की सफलता के लिये हमारे धर्मग्रंथों में चार पुरूषार्थ  बताए गये हैं ,धर्म अर्थ  काम और फिर अंत में इनसे मोक्ष पाना ।पर अफसोस  मनुष्य तो इनमें भी संतुलन न रख केवल अर्थ  को ही महत्व दे रहा है ।प्राकृतिक  संसाधनों  के अत्यधिक  दोहन के लिए उसने अस्थिर प्रकृति वाले हिमालय को भी खोद डाला ।हिमालय  की तलहटी में बसे शिमला ,मसूरी ,जोशीमठ  में पहुँचने वाले हजारों पर्यटकों के भार से वहाँ की धरा  दब कर कराह रही है ।मैं जब हिमाचल के नाहन शहर   गई ,तब वहाँ के ग्रामीण  अंचल में दवाइयों के कारखाने देखकर दंग रह गई ।शिमला में पहाड़ों पर दो तीन मंजिल मकान आम हो गये हैं ।इन पर्वतीय प्रदेशों में  जँगल गायब होते जा रहे हैं ,तापमान  लगातार  बढ़ रहा है ।ग्लेशियर  पिघल रहे हैं ।
एक समय ऐसा था जब जोशीमठ भी बर्फ से ढ़का था ,परन्तु धीरे धीरे इसके ढ़ाल से ग्लेशियर  नीचे खिसकते गये ।ग्लेशियर  अपने साथ  पत्थरों के टुकड़े ,बजरी घसीटते हुए चलता है।  नीचे  आते समय ताप के बढ़ने से किनारों से पिघलने से पानी उसके नीचे जाता है जो उसे प्रदान करते हैं जिससे चट्टानों के टुकड़े ,बजरी वही छूटते जाते हैं जिन्हें हिमोढ़ कहा जाता है । जोशीमठ  इन्हीं हिमोढ़ों से ढ़की ढ़लान पर  बस गया  जो बसावट के लिये अनुपयुक्त  है ।
सबसे बड़ी बात है कि हिमालय युवा पर्वत हैं ,जो लगातार  निर्माण  प्रकिया में हैं। इनमें आंतरिक  हलचल अभी भी जारी है जिसमें चट्टानों का ऊपर नीचे खिसकना  ,उनपर दबाव  पड़ना ,टूटना ,दरार पड़ना जारी है ।हिमालय की सबसे नीची श्रेणी शिवालिक  सबसे नवीन हैं और इसी कारण ये क्षेत्र भूकम्प  के केन्द्र  हैं ।कोमल चट्टानों वाले इन क्षेत्रों में सड़क  ,बांध ,रेलमार्ग निर्माण  आदि मानवीय हस्तक्षेप  से पारिस्थितिकीय  संतुलन बिगड़ा है ,और जमीन धंस  रही है ,नदियों के किनारे टूट रहे हैं ,भूगर्भीय  जल ऊपर आकर खतरा बढ़ा रहा है ।
सियासत  अपने फायदे के लिये धर्म  का सहारा लेती है और इन स्थानों को पर्यटक स्थल  बनाने पर आमदा है ।अब जरूरत है सम्मेलन शिखर बचाने जैसे देशव्यापी आंदोलनों की , ओंकारेश्वर बचाओ जैसी मुहीम की ताकि  देश की आन बान शान पहाड़ बच सके और बच सके वहाँ की संस्कृति ।

Leave A Reply

To Top