भारत के भविष्य से जुड़ा सवाल?

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आज का ‘प्रतिदिन’ भारत के भविष्य से जुड़ा है। यह भारत के भविष्य के लिए अत्यंत ही चिंताजनक बात है, जो फ़ौरन कार्रवाई की अपेक्षा की माँगती है । राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् यानी एनसीईआरटी तथा भारत सरकार के स्कूली शिक्षा मंत्रालय के संयुक्त तत्वावधान में एक सर्वे हुआ। इस सर्वे के आंकड़ों के अनुसार देशभर में कक्षा तीन के बच्चे विशेष रूप से गणित, अंग्रेजी एवं हिंदी में औसत से भी कमजोर साबित हुए हैं।

मानव जीवन में शिक्षा का बड़ा महत्व है। दरअसल, बेहतर व्यक्तियों के निर्माण तथा उज्ज्वल करिअर के लिए सर्वथा उचित शिक्षा की आवश्यकता होती है। वैसे आजादी के बाद से ही हमारी शिक्षा प्रणाली में कई बदलाव किये गये, लेकिन हाल ही में एक सर्वे से प्राप्त आंकड़ों एवं जानकारियों से पता चलता है कि उद्देश्यगत बेहतरी के लिए शिक्षा के क्षेत्र में अब तक किये गये तमाम प्रयास अपर्याप्त रहे हैं।

फाउंडेशन लिटरेसी सर्वे (एफएलएस) शीर्षक के अंतर्गत कराये गये उक्त सर्वे की रिपोर्ट बताती है कि देशभर के विद्यालयों में कक्षा तीन में पढ़ने वाले मात्र 54 प्रतिशत बच्चे ही अंग्रेजी में निपुण हैं, लेकिन दुःख की बात तो यह है कि महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन के इस देश में गणित जैसे रोचक और महत्वपूर्ण विषय में देश के मात्र 52 प्रतिशत बच्चे ही निपुण हैं। वहीं इस सर्वे में देश के शिक्षा जगत का सर्वाधिक दुर्भाग्यपूर्ण और स्याह सच जो उजागर हुआ है, वह यह कि हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी में राष्ट्रीय औसत में मात्र 46 प्रतिशत बच्चे ही देशभर में निपुण पाये गये।

 ‘नेशनल इनीशिएटिव फॉर प्रोफिशिएंसी इन रीडिंग विद अंडरस्टैंडिंग एण्ड न्यूमैरेसी’ यानी ‘निपुण भारत 2021’ नामक उक्त सर्वे हुआ , जिसका उद्देश्य गणित तथा भाषा यानी अंग्रेजी और हिंदी विषयों में मेधा और क्षमता के आधार पर बच्चों की वर्तमान स्थिति का पता लगाना था।कहने को , मोदी सरकार ने 2026-27 तक देशभर में कक्षा तीन के बच्चों को भाषा एवं गणित विषयों में बुनियादी रूप से मजबूत बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। जिसके लिए मार्च, 2022 के दौरान देशभर के सभी राज्यों में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की ओर से आयोजित उक्त सर्वे में 10 हजार विद्यालयों के कक्षा तीन में पढ़ाई करने वाले कुल 86 हजार बच्चों को शामिल किया गया था। उक्त सर्वे के अनुसार हिंदी विषय में बिहार और उत्तर प्रदेश के केवल 45 प्रतिशत बच्चे, जबकि दिल्ली के 50 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल के 75 प्रतिशत बच्चे पढ़ने-बोलने में निपुण पाये गये।

इसके विपरीत अंग्रेजी भाषा में उत्तराखंड के सर्वाधिक 77 प्रतिशत बच्चे निपुण पाये गये, जबकि बिहार के 74 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल के 71, दिल्ली के 66 प्रतिशत बच्चे एवं केरल के 62 प्रतिशत बच्चे इस भाषा में निपुण थे। गौरतलब है कि अंग्रेजी में राष्ट्रीय औसत 54 प्रतिशत है। सर्वे में गणित के क्षेत्र में प्राप्त परिणाम के अनुसार सर्वाधिक पश्चिम बंगाल के 70 प्रतिशत बच्चे संख्याओं को पहचानने के अतिरिक्त जोड़, घटाव, गुणा और भाग में भी निपुण पाये गये,जबकि गणित विषय के राष्ट्रीय औसत 52 प्रतिशत की तुलना में दूसरे स्थान पर बिहार के 66 प्रतिशत बच्चे, तीसरे स्थान पर उत्तर प्रदेश के 62, चौथे स्थान पर उत्तराखंड के 59, पांचवें स्थान पर तमिलनाडु के 56 प्रतिशत बच्चे रहे। वहीं गणित विषय में देशभर में छठे स्थान पर केरल के 55 और सातवें स्थान पर दिल्ली के महज 45 प्रतिशत विद्यार्थी ही निपुण पाये गये।

इसी प्रकार महाराष्ट्र में गणित विषय के प्रश्नों को हल करने में 52 प्रतिशत, अंग्रेजी में 56, मराठी में 57 और हिंदी पढ़ने-बोलने में महज 37 प्रतिशत बच्चों ने अपनी निपुणता साबित की, जबकि गोवा के 53 प्रतिशत बच्चे अंग्रेजी में, 40 प्रतिशत मराठी और 35 प्रतिशत बच्चे गणित में निपुण पाये गये। भाषा और गणित के क्षेत्र में बच्चों की ये स्थिति देख-जानकर देश के भविष्य को लेकर चिंता होना स्वाभाविक है। वैसे गौर से देखा जाये तो हिंदी समेत अन्य भारतीय भाषाओं एवं शिक्षा के प्रति अब तक बरती गयीं लापरवाहियां, उपेक्षा के भाव, अज्ञानता एवं संकल्प का अभाव आदि इस समस्या के मूल कारण हैं। बच्चों की शिक्षा-दीक्षा उनकी अपनी मातृभाषा में नहीं होने के कारण हमारे बच्चे गणित समेत अन्य तमाम विषयों में भी लगातार पिछड़ते चले जाते हैं, जबकि शिक्षा के क्षेत्र में विकास एवं नवाचार की बातें हम दशकों से सुनते आ रहे हैं।

राष्ट्रभाषा हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के उन्नयन तथा उनको अपेक्षित स्थान और सम्मान देने-दिलाने के नाम पर देशभर में प्रायः प्रत्येक वर्ष तरह-तरह के कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। दुर्भाग्य हम विद्यालयों के लिए हिंदी तथा गणित के अच्छे शिक्षक नहीं तैयार कर पाये, जबकि महज सौ लाख की आबादी वाले देश स्वीडन और इसके ही जैसे नौर्वे, डेनमार्क एवं फिनलैंड आदि देशों में सारी शिक्षा उन देशों की अपनी ही भाषाओं में देने की व्यवस्था है। भारत में इस बारे में कोई समग्र नीति नहीं बनी है, जिसकी ज़रूरत है ।

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