कहीं खुशी, कहीं गम’ वाले चुनावों के सबक

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गुजरात में रिकार्ड जीत से भाजपा भले गद्गद् हो, जश्न मनाए लेकिन सच यह है कि चुनावों ने सभी के लिए ‘कहीं खुशी, कहीं गम’ के हालत पैदा किए हैं। भाजपा को गुजरात में रिकार्ड जीत मिली है तो उसके पास से हिमाचल प्रदेश और दिल्ली एमसीडी छिन गए हैं। कांग्रेस को हिमाचल में जीत से खुशी मिली है तो गुजरात, दिल्ली में रिकार्ड हार का गम मिला है। आम आदमी पार्टी हिमाचल में अपना खाता नहीं खोल पाई, न ही गुजरात में सरकार बना सकी लेकिन एमसीडी में कब्जा किया है और गुजरात में इतने वोट हासिल किए जिससे उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल गया। इसलिए इन चुनावों को लेकर किसी को ज्यादा इतराना नहीं चाहिए। ये सभी को सबक दे गए हैं। देश के सबसे लोकप्रिय नेता प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी का जादू उनके गृह प्रदेश गुजरात में ही चला है और कहीं नहीं। चुनावों का मप्र को लेकर आकलन शुरू हो गया है। खासकर यह कि क्या आम आदमी पार्टी गुजरात की तरह मप्र में भी कांग्रेस का खेल बिगाड़ सकती है? भाजपा नेतृत्व मप्र में गुजरात फामूर्ला अपना पाएगा या नहीं? मप्र के हालात गुजरात से बिल्कुल अलग हैं। इसलिए संभव है भाजपा यहां किसी अलग रणनीति पर काम करे। जब मोदी और नड्डा के गृह प्रदेशों में बागियों ने नहीं सुनी तो मप्र से उम्मीद कैसे की जा सकती है? भाजपा को यहां हर कदम फूंक फूंक कर रखना होगा।

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