आगरा: क्या कोई ऐसा उम्मीदवार भी हो सकता है जो सिर्फ हारने के लिए ही चुनाव लड़ता हो? जी हां, यूपी में आगरा की खैरागढ़ विधानसभा सीट से नामांकन भरने वाले हसनुराम अम्बेडकरी ऐसे ही उम्मीदवार हैं. ये 85वां मौका है जब उन्होंने किसी चुनाव के लिए नामांकन भरा है. इससे पहले वो प्रधानी से लेकर लोकसभा, वार्ड मेंबर से लेकर विधायक, हर तरह के चुनाव के लिए नामांकन भर चुके हैं. राष्ट्रपति चुनाव के लिए भी इन्होंने एक बार पर्चा भरा था, जो दस्तावेज पूरे नहीं होने की वजह से खारिज हो गया था.
हसनुराम निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर 84 बार तरह-तरह के चुनाव में किस्मत आजमा चुके हैं लेकिन किसी भी चुनाव में इन्हें कामयाबी नहीं मिली. हसनुराम के बारे में बताया जाता है कि इन्होंने 1985 में आगरा में बीएसपी के तत्कालीन संयोजक अर्जुन सिंह से विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए टिकट मांगा था लेकिन इन्हें जवाब मिला था- ‘तुम्हें तुम्हारी पत्नी तक नहीं पहचानती तो कोई और तुम्हें क्यों वोट देगा?’ बस यही बात हसनुरान को चुभ गई. वो दिन है और आज का दिन, हसनुराम ने ऐसा कोई चुनाव नहीं हुआ जिसके लिए उन्होंने पर्चा नहीं भरा हो. दावा ये भी किया जाता है कि 1985 में हुए चुनाव में हसनुराम को करीब 17 हजार वोट भी मिल गए थे.
पेशे से मनरेगा मजदूर हसनुराम का कहना है कि वो जो भी पैसा कमाते हैं उसमें से आधा समाजसेवा पर खर्च कर देते हैं. हसनुराम के मुताबिक उनका उद्देश्य यही है कि वे चुनाव हारते रहें जिससे लोगों के बीच में ही हमेशा रहें. हसनुराम ने तंज के अंदाज में कहा कि वो चुनाव जीत गए तो लोगों को पहचान भी नहीं पाएंगे. हसनुराम ने बताया कि उन्होंने आखिरी चुनाव फतेहपुर सीकरी लोकसभा सीट से लड़ा था और करीब 4200 वोट पाए थे.