प्रभु श्रीराम अयोध्या तो आए ही हैं. अपने साथ देवी लक्ष्मी को भी लेकर आए हैं. देवी लक्ष्मी की कृपा भी देखिए. देशभर में लगभग एक लाख करोड़ रूपए से ज्यादा का कारोबार भी हो गया है. अयोध्या में दो-तीन साल में पर्यटन से 6 लाख करोड़ रूपए तक के कारोबार होने का अनुमान है. इस कारोबार से गरीब और अमीर सब लाभांवित हो रहे हैं. कुबेर के भी खजाना खोलने से अयोध्या का आर्थिक रूप से कायपलट हो रहा है. यह सब श्रीराम के प्रति आस्था और भक्ति का पुण्य प्रताप है. हिंदुत्व की भावना तो है ही. लेकिन कारोबार में बिल्कुल व्यवसायिक भावना है. अब देखना यह है कि इस कारोबार से सरकार को आर्थिक रूप से कितना फायदा हो रहा है. सरकार तक जीएसटी कितना पहुंचता है. इसका खुलासा सरकार ही करेगी. कारोबार में औद्योगिक घराना भी शामिल है. छोटे व्यवसायी तो हैं ही. इस कारोबार से गरीबी तो नहीं मिटेगी. मगर सड़क किनारे श्रीराम के झंडे बेचने वाले बच्चों की उम्मीदें दुगनी जरूर हो जाएगी. ये बच्चे कम से कम हफ्तेभर अपने पेट भरने की चिंता से मुक्त रहने वाले हैं. मिट्टी के दीये बेचने वालों के घर भी हफ्तेभर तो रोशनी रहने ही वाली है. किराने वाले रोज पैसे गिनेंगे. यह तो तय है कि श्रीराम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद अयोध्या में लक्ष्मी हमेशा विराजमान रहने वाली हैं. अयोध्या राम भक्ति के साथ पर्यटन स्थल में भी तब्दील हो गया है. यहां देश-विदेश से आए भक्तों की भीड़ हमेशा रहेगी और यही वजह है कि अयोध्या और अयोध्यावासियों के आर्थिक विकास में दिन-रात तरक्की देखने को मिलेगी. अयोध्यावासी भी खुश हैं कि वे जिस अच्छे दिन का इंतजार कर रहे थे वो दिन आ गए.
जब बाबरी मस्जिद के ढ़ांचे को ढ़हाया गया था तब आज के अयोध्या के बारे में शायद ही किसी ने सोचा होगा. तब रामलला को आजाद कराने की भावना थी. अपने श्रीराम को पाने की भावना थी. अदालती लड़ाई में रामलला को अपने घर लाने की भावना थी. पांच सौ साल बाद रामलला को अपने घर में लाने का सपना साकार हुआ है और यह किसी भी राम भक्त के लिए दुनिया की सबसे बड़ी खुशी है. जब मन से खुशी मिलती है तो उत्साह आज की तरह दिखेगा ही. यह उत्साह देश के सामाजिक और आर्थिक विकास में सहायक बन गया है. लेकिन अभी यह सोच लेना कि इसके माध्यम से भी 2025 तक भारत 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था का विजन पूरा कर लेगा, थोड़ी जल्दबाजी होगी. लेकिन जो उत्साह देश के लोगों में दिख रहा है, यह देश के सभी धार्मिक स्थलों पर कायम रहा तो विजन को पूरा करने में सहायक साबित हो सकता है. धर्म स्थलों पर भक्ति भाव से चढ़ावा करोड़ों में चढ़ता है और इसके जरिए भी आर्थिक विकास को देखा जा सकता है. एसबीआई की रिपोर्ट में अगले पांच सालों में उत्तर प्रदेश के इकोनॉमिक आंकड़ों का जबरदस्त अनुमान लगाया गया है. रिपोर्ट के अनुसार साल 2028 तक देश की इकोनॉमी का साइज 5 ट्रिलियन डॉलर हो जाएगा. इसी साल में उत्तर प्रदेश की जीडीपी 50 बिलियन डॉलर के पार पहुंच जाएगी. खास बात तो ये है कि साल 2028 तक उत्तर प्रदेश की जीडीपी की हिस्सेदारी भारत की इकोनॉमी में दूसरे नंबर पर आ जाएगी. साथ ही उत्तर प्रदेश की जीडीपी का साइज यूरोपीय देश नॉर्वे से भी ज्यादा बड़ा हो जाएगा. रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा वित्त वर्ष में उत्तर प्रदेश की जीडीपी 24.4 लाख करोड़ रुपए यानी 298 बिलियन डॉलर होने का अनुमान है. अभी तो जो भक्ति भाव दिख रहे हैं उसमें युवाओं के भी भक्ति भाव शामिल हैं. भारत युवाओं का देश माना जाता है. युवाओँ में वह शक्ति है जिसके जरिए सामाजिक और आर्थिक विकास में बहुत बड़ा योगदान मिल सकता है. लेकिन युवाओं के उत्साह को सही दिशा में ले जाने की बहुत जरूरत है. आपातकाल के दौरान जयप्रकाश नारायण ने युवाओं की शक्ति का सफल प्रयोग किया था और देश आपातकाल से मुक्त हुआ था. यह दीगर बात है कि राजनीतिक लोभियों ने जयप्रकाश नारायण के सपने के भारत को टिकने नहीं दिया. आज का युवा भी रामराज्य में जीना चाहता है. इसलिए वह रामलला के प्रेम में दीवाना बना हुआ है.
व्यवसाय करने वाले लोग हर मौके में अपना अवसर तलाश लेते हैं. रामलला की भक्ति में भी अवसर मिल गया है. आस्था और विश्वास ने ऐसी सनातन अर्थव्यवस्था की जमीन दी है जिससे कई तरह के व्यवसाय बढ़ रहे हैं. इस तरह के व्यवसाय अचानक से शुरू होते हैं और देखते ही देखते इस व्यवसाय का भूगोल बड़ा हो जाता है. अब देखिए श्रीराम के झंडे हैं तो उससे कपड़ा और लकड़ी व्यवसायी सीधे-सीधे जुड़ गए हैं. लेकिन ऐसे झंडे दुकानदारों के अलावा गरीब बच्चे भी बेचते हैं. व्यवसाय का यह समीकरण अनोखा होता है और इसे तत्काल आर्थिक विकास के रूप में देखा जा सकता है. इस तरह के व्यवसाय को भक्ति और भावना के साथ जोड़कर विकसित किया जाता है. श्रीराम के झंडे के अलावा श्रीराम की आकृति के साथ सनातन ड्रेस, टी शर्ट और टोपी बाजार में छा गए हैं और घर-घर पहुंच भी गए हैं. मिलों में कपड़े तैयार हुए हैं. बिना किसी धार्मिक भेदभाव के ड्रेस, टोपी, टी शर्ट बनाने वाले कारीगर पूरे भक्ति भाव से काम करने में व्यस्त हो गए. 140 करोड़ की आबादी वाले इस भारत में बाजार तो बहुत बड़ा है. इसलिए कारोबारियों ने देश के उन शहरों का सर्वे करा लिया जहां आस्था और भक्ति के भाव उच्च शिखर पर हैं और उसी के हिसाब से बाजार में सामग्री भेजी गई. देश में व्यापार जिस तरह से सृजित हुआ है उसमें श्रीराम की शोभा यात्रा, पैदल यात्रा, फेरी, रैली, लेजर शो आदि ने व्यापार को बढ़ावा दिया है. 50 हजार से ज्यादा कार्यक्रमों का आयोजन हुआ है. इसमें टेंट वालों के कारोबार बढ़े हैं. म्यूजिकल ग्रुप, ढोल, ताशे, बैंड, शहनाई, नफ़ीरी आदि बजाने वाले कलाकार व्यस्त रहे हैं. अखंड रामायण पाठ, सुंदरकांड पाठ के अलावा राम कीर्तन के लिए पंडितों और कलाकारों की मांग बढ़ गई. घर-घर की सजावट के लिए दीये और फूलों के बाजारों में भीड़ रही. मिट्टी के दीये तो विदेशों में भी भेजे गए. पूजा सामग्री भी खूब बिके. लोगों ने पांच करोड़ से ज्यादा श्रीराम मंदिर की आकृतियां खरीदी. प्रभु श्रीराम के आगमन को लेकर कई म्युजिक कंपनियों ने वीडियो एलबम भी निकाले और यह खूब बिके हैं. किराना बाजार, ट्रेवल एजंसी, पर्यटन, रेलवे, एयरलाइंस, हॉस्पीटलिटी सेक्टर, होटल बिजनेस में निवेश के साथ कारोबार में उछाल आया है. होटल बिजनेस पर 2000 हजार करोड़ रूपए से ज्यादा का निवेश होने जा रहा है. शेयर बाजार में भी रौनक है.
लोगों की भावनाओं को परख कर ही उस पर बाजारवाद हावी होता है. श्रीराम मंदिर के निर्माण और रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम भी बाजारवाद से अछूता नहीं रहा. इस बाजारवाद से किसी को परहेज नहीं है. क्योंकि, इसमें भी आस्था और भक्ति भाव का समावेश होता है. कई जगहों पर राम भक्तों के लिए मुफ्त में भोजन की व्यवस्था की गई और शोभा यात्रा एवं रैली में उनके लिए भोजन की व्यवस्था की गई. मिठाइयां तो टनों में बनी और बंटी. इसे प्रसाद के रूप में लोगों ने ग्रहण किया. बाजार तो अयोध्या का भी बड़ा हो गया है. मुंबई और देश के दूसरे शहरों के नामी बिल्डरों की दिलचस्पी की वजह से वहां की जमीन अब महंगी हो गई है. कल तक बेकार बैठे लोग अपने घरों को छोटे-छोटे होटलों में भी तब्दील कर दिया है और राम भक्तों को सस्ते में कमरे देकर कमाई का साधन बना लिया है. इसे सकारात्मक रूप में देखा जाए तो अयोध्या में श्रीराम मंदिर और रामलला की वजह से रोजी-रोटी का अच्छा साधन मिल गया है. इसे कुछ लोग प्रभु श्रीराम का आशीर्वाद मान रहे हैं. इसमें किसी को राजनीति भी दिख सकती है. कुछ लोग इसमें अपना वोट बैंक भी तलाश सकते हैं. यह लोकतंत्र में संभव है. इससे इनकार नहीं किया जा सकता. लोकतंत्र में हर तरह की आजादी है. बस, उस आजादी का कब फायदा उठाना है, उस पर निर्भर करता है. लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि श्रीराम मंदिर और रामलला के लिए किस तरह से संघर्ष करना पड़ा और कुछ कारसेवकों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी. इस पर बाजारवाद हावी नहीं हो सकता है. लेकिन अब जो श्रीराम मंदिर का निर्माण हुआ और रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हुई है, उसके बाद रामराज्य में रहने की लोगों की भावना भी बढ़ी है. इस भावना में अटूट विश्वास है. यह विश्वास टूटना नहीं चाहिए. अगर हम आजादी के सत्तर साल बाद देखें तो इस तरह के विश्वास का यह पहला मंदिर है. इस मंदिर से एक दिव्य ज्योति निकल रही है जो लोगों के विश्वास को प्रबल करने का काम करेगी.