पराली की समस्या का एम्प्री ने निकाला व्यावसायिक समाधान

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भोपाल। पर्यावरण प्रदूषण की गंभीर समस्या के चलते जब फसल अवशेषों (पराली) को जलाना चिंता और चिंतन का विषय बन चुका है, ऐसे में सीएसआईआर-एएमपीआरआई (एम्प्री) भोपाल इसका समाधान लेकर उपस्थित हुआ है।
एम्प्री ने इस समस्या के समाधान के लिए जो तकनीक विकसित की है उसका व्यावसायिक उपयोग (उद्योग लगाकर) भी किया जा सकता है। संघीय प्रयोगशाला वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (सीएसआईआर) की भोपाल स्थित क्षेत्रीय प्रयोगशाला प्रगत पदार्थ तथा प्रक्रम अनुसंधान संस्थान (एएमपीआरआई) पराली की समस्या के व्यावसायिक समाधान के साथ उद्योगपतियों के बीच पहुंची है। दरअसल फसल अवशेष को लेकर एम्प्री द्वारा किए गए अनुसंधान की यह जानकारी ग्वालियर में एमएसएमई डीएफओ द्वारा आयोजित दो दिवसीय वेंडर विकास कार्यक्रम के दौरान सामने आई। इस गरिमापूर्ण आयोजन में लगभग 200 सार्वजनिक उपक्रमों, विक्रेताओं और उद्योगों ने भाग लिया।
सीएसआईआर-एएमपीआरआई की प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अलका मिश्रा ने पराली से बने पराली पार्टिकल बोर्ड और संगमरमर ग्रेनाइट पत्थर के कचरे से बने हाइब्रिड ग्रीन कंपोजिट बोर्ड के बारे में एक प्रस्तुति दी। उन्होंने अपने समूह प्रमुख डॉ. अशोकन पप्पू, मुख्य वैज्ञानिक, डॉ. अवनीश कुमार श्रीवास्तव, निदेशक, सीएसआईआर-एएमपीआरआई, भोपाल के मार्गदर्शन में इसे विकसित किया है। डॉ. मिश्रा ने बताया कि इस विकसित उत्पाद में व्यावसायिक रूप से उपलब्ध उत्पादों की तुलना में बेहतर ताकत है। यह दीमक, जल, पानी और अग्निरोधक भी है। इनसे किसी भी प्रकार का फर्नीचर जैसे दरवाजे, दीवार पैनल बनाए जा सकते हैं। इससे पंजाब, हरियाणा, एनसीआर, महाराष्ट्र में पर्यावरण प्रदूषण पैदा करने वाली पराली जलाने की समस्या को रोका जा सकता है और स्वास्थ्य संबंधी खतरों को भी कम किया जा सकता है। सीएसआईआर-एएमपीआरआई, भोपाल इस तकनीक का व्यावसायीकरण करने के लिए तैयार है। इस तकनीक का उपयोग कर उद्यमी अपना उद्योग स्थापित कर सकते हैं। ऐसा करने से किसानों को पराली से लाभ होगा, कृषि अपशिष्ट निपटान की समस्या से लोगों को स्वास्थ्य संबंधी प्रतिकूल समस्याओं से भी बचाया जा सकता है। प्रौद्योगिकी के प्रसार के बाद उद्यमियों ने उत्पादन के लिए संपूर्ण प्रशिक्षण प्रदान किया।

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