आधा दर्जन सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशियों की मतदाता के बीच पहचान का संकट
भोपाल। मध्यप्रदेश में जद्दोजहद के बाद कांग्रेस ने 22 सीटों पर अपने उम्मीदवार तो खड़े कर दिए, मगर इन प्रत्याशियों के सामने अब मतदाता के बीच उनकी पहचान का संकट भी खड़ा होता नजर आ रहा है। इसके चलते इन उम्मीदवारों को खासा मशक्कत भी करनी पड़ रही है। हालांकि कांग्रेस नेता इन्हें मजबूत उम्मीदवार बता रहे हैं।
प्रदेश में कांग्रेस ने 22 लोकसभा सीटों के लिए प्रत्याशियां का चयन कर लिया है। इसके अलावा छह स्थानों पर उसे प्रत्याशी चयन और करना है। संभवत शेष प्रत्याशियों के नामों की घोषणा कांग्रेस 27 मार्च को कर सकती है। अब तक घोशित किए 22 प्रत्याशियों में कुछ को छोड़ दिया जाए तो कई स्थानों पर कमजोर प्रत्याशी नजर आते हैं। वहीं आधा दर्जन सीटों पर तो ऐसे उम्मीदवार भी मैदान उतारे गए हैं, जिनकी मतदाता के बीच अपनी पहचान ही नजर नहीं आती है। हालांकि संगठन स्तर पर जरूर ये प्रत्याशी सक्रिय रहें हैं, मगर मतदाता के बीच सीधी पकड़ इनकी ना होना कांग्रेस के लिए संकट खड़ा कर सकती है। इनमें भोपाल, इंदौर, बालाघाट, सागर, देवास, खरगोन, टीकमगढ़ और धार सीट के प्रत्याशी है। इन प्रत्याशियों को फिलहाल कमजोर आंका जा रहा है। इसके पीछे मूल कारण इनकी मतदाता के बीच सीधी पहचान ना होना है। हालांकि कांग्रेस पदाधिकारी और खुद प्रत्याशी इस बात का दावा कर रहे हैं कि उनकी मतदाता के बीच खासा पैठ है और ये प्रत्याशी भाजपा को कड़ी टक्कर देते नजर आएंगे।
कुछ को विधानसभा चुनाव में मिली थी निराशा
इन प्रत्याशियें में से कुछ ने विधानसभा के 2023 के चुनाव में भी टिकट के लिए दावेदारी की थी, मगर इन्हें तब निराशा ही हाथ लगी थी। मगर इस बार मामला दूसरा था, जिसके चलते ये टिकट पाने में सफल रहे। कांग्रेस के कई नेता चुनाव मैदान में उतरने से दूरी बना रहे थे, इसके चलते भी कुछ स्थानों पर इन दावेदारों को टिकट मिला है। हालांकि पार्टी के सर्वे में भी इन प्रत्याशियों का नाम नहीं आया था। इसके अलावा उन्हें टिकट न देने के और भी राजनीतिक कारण थे। लेकिन अब पार्टी ने उन पर ही दाव खेला है।
इन सीटों पर पहचान का आएगा संकट
राजधानी भोपाल में कांग्रेस ने अरुण श्रीवास्तव को प्रत्याशी बनाया है। वे संगठन स्तर पर जरूर सक्रिय रहे। ग्रामीण कांग्रेस के अध्यक्ष भी है, मगर भोपाल संसदीय क्षेत्र में उनकी पहचान कम ही है। शहर के अलावा सीहोर और अन्य विधानसभा सीटों पर उनका प्रभाव नजर नहीं आता है। इसी तरह इंदौर के अक्षय कांति बम को मैदान में उतारा है। इनके सामने भी पहचान का संकट है। उनकी सक्रियता आम मतदाता तक नहीं रही है। इसी तरह बालाघाट से प्रत्याशी बनाए गए अशोक सरस्वार की भी मैदानी पकड़ कमजोर है। सरस्वार बालाघाट जिला पंचायत के सदस्य हैं। उनके पिता विधायक थे। बालाघाट के ग्रामीण इलाकों में उनकी कुछ लोकप्रियता है, लेकिन शहरी मतदाता उनसे कम ही परिचित हैं। वहीं सागर से प्रत्याशी बनाए गए गुड्डू राजा बुंदेला मध्यप्रदेश के मूल निवासी ही नहीं हैं। उत्तर प्रदेश के निवासी बुंदेला खुरई विधानसभा क्षेत्र से टिकट चाहते थे। बुंदेला को विधानसभा चुनाव का टिकट देने के बजाय लोकसभा चुनाव लड़ने को कहा गया है। धार से राजेन्द्र मुवेल को प्रत्याशी बनाया गया है। उनके सामने भी कुछ इसी तरह का संकट है। जबकि टीकमगढ़ के पंकज अहिरवार ने भी विधानसभा दावेदारी की थी, मगर सर्वे में नाम ना होने से उन्हें टिकट नहीं दिया था। उनकी स्थिति कमजोर आंकी गई थी। खरगोन में पार्टी ने पोरलाल खरते को उम्मीदवार बनाया है। सरकारी नौकरी छोड़कर खरते अब राजनीति में हाथ आजमा रहे हैं। मगर उनके लिए भी संसदीय क्षेत्र में पहचान का संकट है।