पैंतीस विधायकों ने छोड़ी विधायकी, बाइस हुए गुमनाम

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चार बन पाए मंत्री, नौ को ही जनता ने चुना
भोपाल। प्रदेश में एक दशक में कांग्रेस के पैंतीस विधायक विधायकों ने पाला बदलकर भाजपा का दामन थामा, मगर आज बाइस विधायक गुमनामी में चले गए। कई नेताओं जिन्होंने भाजपा की सदस्यता ली, वे भी वर्तमान में सक्रिय नजर नहीं आ रहे हैं। अधिकतर नेताओं, विधायकों को टिकट नहीं मिला या फिर वे चुनाव हार गए। वर्तमान में सिर्फ 9 ही विधायक रहे हैं, जिनमें से चार मंत्री पद को पाने में सफल रहे हैं।
प्रदेश में 2013 के विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस विधायकों के भाजपा में जाने का सिलसिला चौधरी राकेश सिंह ने ष्शुरू किया था। विधानसभा में सरकार द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान वे कांग्रेस का दामन छोड़कर भाजपा में ष्शामिल हो गए। इसके बाद संजय पाठक, नारायण त्रिपाठी और दिनेश अहिरवार ने भी भाजपा का दामन थामा। बड़े स्तर पर कांग्रेस के 22 विधायकों ने 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में तख्ता पलट किया और भाजपा में चले गए। इसके बाद चार विधायक भाजपा में ष्शामिल हुए। 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के 66 विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचे, मगर चंद माह बाद लोकसभा चुनाव के दौरान तीन और विधायकों कमलेश शाह, रामनिवास रावत और निर्मला सप्रे ने भाजपा का दामन थाम लिया। इस तरह एक दशक में देखा जाए तो कुल 35 पैंतीस विधायकों ने कांग्रेस का साथ छोड़ा और भाजपा का दामन थामा लिया।
चार ही बने मंत्री, रह गए नौ विधायक
दलबदल की राजनीति के चलते हालात ऐसे बदले की भाजपा में जाकर इनमें से कई तो गुमनामी में चले गए हैं। कुछ को विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं मिला तो कुछ चुनाव हार गए। वर्तमान में सिर्फ नौ ही नेता ऐसे हैं जो फिर से विधायक बन पाए। इनमें तुलसीराम सिलावट, गोविंद राजपूत, प्रद्युमन सिंह तोमर और ऐंदलसिंह कंसाना मंत्री है। जबकि पांच बिसाहुलाल सिंह, संजय पाठक, प्रभुराम चौधरी, हरदीप सिंह और ब्रजेन्द्र यादव विधायक बन पाए हैं, बाकि विधायकों को अपने राजनीतिक जीवन को फिर से मजबूत करने के लिए जूझना पड़ रहा है।
पटवारी ने कहा भगवान उनकी मदद करे
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने कहा कि सच्चाई सिर्फ यह है कि बीते 10 सालों में 35 कांग्रेसी विधायकों ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामा, लेकिन उसमें से 22 नेताओं का सियासी सफर लगभग गुमनामी में चला गया है। ज्यादातर नेता या तो चुनाव हार गए या फिर उन्हें टिकट ही नहीं मिला। इन 35 नेताओं में फिलहाल 9 ही विधायक हैं और उनमें से भी केवल 4 ही मंत्री पद तक पहुंच पाए। उन्होंने कहा कि  भय और लालच के दम पर विपक्ष को खत्म करना चाहती है! डरे हुए कुछ मौकापरस्त मन बदल भी रहे हैं, लेकिन, उनकी स्थिति जनता भी देख, समझ रही है। कभी मित्र, साथी, सहयोगी रहे ऐसे चेहरों के प्रति मेरी पूरी सहानुभूति है। यह दिली इच्छा भी है कि यदि वे राजनीति को जनसेवा का जरिया मानते हों, तो ईश्वर उनकी मदद करे।

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